चुनाव आयोग ने कुछ नेताओं की बदजुबानी को लेकर सख्त रवैया अपनाया है। उसने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, बीएसपी सुप्रीमो मायावती, केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी और समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान द्वारा प्रचार के दौरान सांप्रदायिक और अभद्र बयान देने की शिकायतों पर संज्ञान लिया। इसके साथ ही अलग-अलग आदेश जारी करके मायावती और मेनका गांधी के चुनाव प्रचार करने पर 48 घंटे की और योगी आदित्यनाथ और आजम खां पर 72 घंटे की रोक लगा दी है।अनुच्छेद 324 के तहत मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए आयोग ने ये आदेश जारी किए और ऐसे मामलों में अधिकतम जो भी कर सकता था, किया लेकिन इससे नेताओं के बिगड़े बोल पर रोक लगने की उम्मीद करने के लिए हमें कुछ ज्यादा ही आशावादी होना पड़ेगा। नेता आमतौर पर ऐसी कार्रवाइयों को गंभीरता से नहीं लेते और प्रतिबंधों से बचने के रास्ते भी निकाल लेते हैं। मायावती ने आयोग के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जहां उन्हें मुंह की खानी पड़ी। सबको पता है कि ये नेतागण रोक की सीमित अवधि में भी चुनाव प्रचार के पारंपरिक तरीके छोड़कर जनता से अन्य माध्यमों के जरिए संवाद जारी रखेंगे। \इस लोकसभा चुनाव में विभिन्न दलों के बीच जैसी कटुता और नेताओं की भाषा में जिस स्तर की अभद्रता देखी जा रही है, वह चिंता का विषय है। 1977 और 1989 के चुनावों में भी सियासी तनातनी कुछ-कुछ आज जैसी ही थी लेकिन भाषा का पैमाना इतना नीचे तब भी नहीं आया था। इस बार तो जैसे अमर्यादित होने की होड़ सी लग गई है। कुछ लोगों का मानना है कि यह पूरे विश्व के बदलते माहौल का असर है। अमेरिका के पिछले राष्ट्रपति चुनाव और उसके बाद होने वाले यूरोप के चुनावों में ऐसी ही गिरावट देखी गई थी। एक राय यह भी है कि सोशल मीडिया जैसे नए संचार माध्यम के कारण भी कटुता तेजी से फैल रही है। यह टकराव दिमाग पर इस कदर हावी रहता है कि एक उम्मीदवार अपने प्रतिद्वंद्वी की आलोचना का करारा जवाब देने की कोशिश में धैर्य खो बैठता है। इस बार एक नई बात यह देखी जा रही है कि नेतागण सीधे मतदाताओं को धमका रहे हैं। जिन लोगों के ऊपर सिस्टम को चलाने और बचाए रखने की जिम्मेदारी है, वही ऐसी गतिविधियों में लिप्त हैं। चुनाव आयोग की ताकत सीमित है। वह प्रतीकात्मक फैसले ही दे सकता है। न्यायपालिका की भूमिका भी इसमें बहुत ज्यादा नहीं हो सकती क्योंकि इस मामले में कोई सुसंगत कानून नहीं बना है।
बदजुबानी का चुनाव
